Saturday, December 29, 2012

एक कशिश रह गई बाकी ....

एक कशिश रह गई
हर दिल में  बाकी
हर दिल में था एक तूफां
हर दिल में थी एक आस
कि एक दिन वो उठ खड़ी होगी
और लेगी बदला अपने गुनहगारों से
पर नहीं हुआ कुछ भी ऐसा
बुझ गई वो लौ आज
अब कौन लेगा बदला
और कौन करेगा इन्साफ
बस छोड़ गई हर दिल में
एक सवाल
बेटी को ज़न्म दें या सिर्फ बेटों को??

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर बहुत बढ़िया संदर्भ को सामने लाया गया है
    बहुत बहुत बधाई

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  2. sundar aur sateek rachna.. very poignant..

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  3. कल 18/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  4. गुनहगारों को कभी न कभी सजा जरूर मिलती हैं ऊपर वाला भले से देर से इन्साफ करे लेकिन ऐसी जन्म में उन्हें सजा जरूर मिलती हैं ....
    सार्थक चिंतन प्रस्तुति

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