Tuesday, June 17, 2014

हसरतें बाकी रह गईं....

कुछ हसरतें रह गई  बाकी
कुछ अरमान रह गए अधूरे

कुछ सपने तुम्हारे थे
कुछ सपने हमारे थे,

संजोया था हमने
मिलके जिनको,

फिर कहाँ से ये तूफां  आया
जिसे हम रोक न सके,

हमारे अरमानों की कश्ती
बह गई उस तूफां  में,

न दोष तुम्हारा था
न हमारा,

कमबख्त तूफां ही
गलत वक्त पर आया।। 





10 comments:

  1. आप की ये खूबसूरत रचना...
    दिनांक 03/07/2014 की नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है...
    आप भी इस हलचल में अवश्य आना...
    सादर...
    कुलदीप ठाकुर...

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  2. अनुपम भाव संयोजन ....

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  3. बहुत अच्छी लगी यह रचना |

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  4. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...

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  5. ..............कमबख्त तूफां ही
    गलत वक्त पर आया।।
    अति सुन्दर!

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  6. सुन्दर प्रस्तुति

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  7. अंतस को छूती बहुत सुन्दर रचना...

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  8. बहुत ही खुबसूरत अभिव्यक्ति

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  9. अत्यंत खूबसूरत रचना

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  10. अत्यंत खूबसूरत रचना

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