Friday, May 12, 2017

कभी तुझसे कोई...

कभी तुझसे कोई शिकायत नहीं की 
बिना मिले ही तुझसे सारी बातें की 
नहीं जानती कि कभी कुछ कहना भी चाहा था 
पर तुझसे मिलने की कभी हिमाकत नहीं की 
माना कि क़िस्मत का खेल बहुत ही अनोखा है 
हाँ मुझे तेरी किस्मत से मिलना तो है 
शायद उसी के भरोसे मैं कुछ कह पाऊं 
और तू कुछ समझ पाए... 
वक़्त बेवक़्त का यूँ  ख्यालों में आना तेरा 
मुझे कभी - कभी गुमराह कर जाता है 
रही बात मुकद्दर की तो मैं नहीं जानती 
लकीरों का क्या है वो तो हर हाँथ में होती हैं
इनके भरोसे हम किस्मत नहीं छोड़ सकते 
और फिर इनसे मुक़द्दर नहीं बदलते !!